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Child Custody After Divorce

तलाक़ के बाद बच्चो की कस्टडी किसे मिलती है? Child Custody after divorce In Hindi

क्या है इस पोस्ट में ?

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हेलो दोस्तों, जैसा कि आप लोग जानते हैं कि आज की तारीख में भारत में तलाक के मामले काफी तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। लोगों के जीवन में आजकल मनमुटाव और टकराव होने के कारण बात तलाक तक पहुंच जा रही है। ऐसे में लोगों के मन में सवाल जरूर आता होगा कि अगर आपका तलाक होता है, तो बच्चे का क्या ? बच्चो की कस्टडी किसको मिलेगी माता या पिता को ? कस्टडी मिलने की प्रक्रिया क्या है? और आप अपने बच्चे की कस्टडी court से कैसे लेंगे? अगर आप इसके बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं तो मैं आपसे अनुरोध करूंगा आपकी पोस्ट को आखिर तक पढ़े आइए जाने। Child custody after Divorce के बारे में पूरी जानकारी के लिए हमारे साथ बने रहे।

चाइल्ड कस्टडी का अर्थ क्या होता है – Child Custody means In Hindi

Custody का अर्थ होता है पालन, संरक्षण और निगरानी करना। बच्चों के कस्टडी देने का मतलब होता है कि उनकी निगरानी देखभाल या उनका पालन पोषण आप अपने जिम्मे ले ले रहे हैं. उसे हम लोग कस्टडी कहते हैं।

Child Custody after divorce In Hindi
Court Case Child Custody after divorce In Hindi, Source: Google Imges

सामान्य तलाक होने के बाद बच्चे की कस्टडी माता-पिता को कैसे मिलती – Who get Child Custody after Divorce

दोस्तों जैसा कि आप लोग जानते हैं कि जब किसी माता-पिता का तलाक होता है। तो इसका सबसे अधिक प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। क्योंकि बच्चों सबसे ज्यादा चिंतित रहते हैं कि उन्हें किसके साथ रहना है माता या पिता. क्योंकि माता-पिता दोनों उनके लिए महत्वपूर्ण है।

ऐसे में आपके मन में सवाल आता होगा कि अगर किसी व्यक्ति का सामान्य तरीके से तलाक हो रहा है। तो ऐसे में बच्चे की कस्टडी किसको दी जाएगी तो मैं आपको बता दूं कि कोर्ट यहां पर बच्चों की कस्टडी देने के लिए एक विशेष प्रकार का मापदंड निर्धारित किया है। जब कोर्ट को लगता है कि इस मापदंड पर माता-पिता दोनों में से कोई भी पूरी तरह से खरा उतर रहा है। तब कोर्ट बच्चे की कस्टडी माता या पिता किसी एक को प्रदान करता है।

अगर दोनों में से एक को चुनना हो तो कोर्ट इस बात को सुनिश्चित करता है कि वह बच्चों की परवरिश कौन अच्छे तरीके से कर सकता है? किसकी आय सबसे अधिक है जो बच्चे को अच्छी शिक्षा जा सके उसका मानसिक और शारीरिक तौर पर विकास कर सके? तभी जाकर कोर्ट बच्चों की कस्टडी माता-पिता में से किसी एक को देता है अगर कोर्ट को लगता है कि माता-पिता दोनों कोई भी बच्चे की कस्टडी लेने के योग्य नहीं है। तब कोर्ट बच्चे की कस्टडी तीसरे पक्ष को प्रदान करता है।

Child Custody Law in India
Child Custody Law in India

बच्चे की कस्टडी कितने प्रकार की होती – Types of Child Custody after divorce In Hindi

बच्चों की कस्टडी निम्नलिखित प्रकार की होती है उसका विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं जो इस प्रकार है-

फिजिकल कस्टडी – Physical Custody

  • इस कस्टडी में कोर्ट माता-पिता दोनों में से एक को प्राइमरी गार्डियन बनाता है।
  • दूसरे के लिए तारीख निर्धारित करता है उसी दिन को वह बच्चे से मिल पाएगा।
  • माता और पिता जी से भी बच्चे से मिलने का अधिकार कोर्ट ने प्रदान किया है। वह बच्चे के साथ समय गुजार सकता है लेकिन उसकी एक समय अवधि भी कोर्ट ने निर्धारित किए जिस दिन को कोर्ट ने बच्चे के साथ मिलने का समय दिया है।
  • बाकि दिनों में बच्चो को दूसरे पक्ष को मिलने की अनुमति नहीं होगा . बच्चा अपने प्राइमरी गार्डियन के पास ही रहेगा।

संयुक्त कस्टडी – Joint Custody

  • इसके तहत बच्चे के माता-पिता दोनों को रोटेशन के के आधार पर कस्टडी मिलती है।
  • इसमें बच्चा एक निश्चित अवधि के लिए बारी बारी से माता-पिता दोनों के पास जाता है ताकि माता-पिता दोनों बच्चे से मिल सके।

लीगल कस्टडी – Legal Custody

  • लीगल कस्टडी के अंतर्गत माता-पिता में कोई एक पक्ष कानूनी तौर पर बच्चे के जीवन से जुड़े हुए सभी प्रकार के अहम फैसले ले सकता है।
  • 18 साल उम्र न होने तक माता-पिता में से कोई एक शिक्षा, वित्त, धर्म और मेडिकल जरूरतों के बारे में बड़ा फैसला ले सकते।

सोल कस्टडी – Sole Custody

  • जब बच्चे के माता या पिता में कोई स्वास्थ्य रूप से अनफिट होता है तो ऐसे में दूसरे पक्ष को बच्चे की कस्टडी दे दी जाती है जो बच्चे का ध्यान अच्छी तरह से रख सके
  • इसके इलावा अगर बच्चो को किसी एक माता या पिता से कोई खतरा हो तो कोर्ट दूसरे पक्ष को बच्चे को पूरी कस्टडी दे सकता है।

थर्ड पार्टी कस्टडी – Third Party Custody

दोस्तों, यदि बच्चे के माता-पिता दोनों की मृत्यु हो जाए या दोनों की दिमागी हालत ठीक न हो ऐसे सिटी में बच्चे की कस्टडी तीसरे पक्ष को दे दी जाती है जो बच्चे की देखभाल कानूनी संरक्षण में अच्छी तरह से करेगा। Child Third Party custody निचे के लोगो की दी जाती है जैसे के :-

  • दादा दादी को
  • नाना नानी को
  • अनाथ आश्रम को

कानून गार्डियन एंड वार्ड्स एक्ट 1890 की तरह ही है. इस कानून के मुताबिक अगर बच्चा 5 साल से नीचे का है तो उसकी कस्टडी मां को दी जाती है।बच्चा अगर 9 साल से ऊपर का है तो वह कोर्ट में अपनी बात रख सकता है कि वह मां या पिता किसके पास जाना चाहता है। बच्चा अगर बड़ा हो गया है तो उसकी कस्टडी अकसर पिता को मिलती है। मामला बेटी का हो तो उसकी कस्टडी मां को मिलती है। हालांकि पिता भी रखना चाहें तो वे कोर्ट में अपनी बात रख सकते हैं.

हिंदू धर्म में बच्चों की कस्टडी देने की प्रक्रिया – Child Custody Law for Hindus

हिंदू धर्म के बच्चों को माता-पिता को कस्टडी दी जाएगी इसके लिए भारतीय कानून व्यवस्था में में हिंदू माइनोरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट (Hindu minority and guardianship act) 1956 बनाया गया है। जिसके तहत बच्चे की कस्टडी माता-पिता को दी जाती है, इस प्रकार के एक्ट में कुछ बातों का ध्यान रखा गया है जिसका विवरण हम आपको नीचे दिए अनुसार है :-

  • बच्चे की उम्र 5 साल से कम है तो ऐसी स्थिति में बच्चे की कस्टडी उसके मां को दी जाएगी
  • यदि बच्चे की उम्र 9 साल से अधिक है तो कोर्ट बच्चे से उसकी मर्जी पूछेगा कि वह किसके साथ रहना पसंद करेगा माता या पिता उसके मर्जी के के अनुरूप court बच्चे की कस्टडी माता-पिता को देता है।
  • यदि बच्चा बड़ा है तो अक्सर बच्चे की कस्टडी उसके पिता को मिलती है
  • बेटी के मामले में कस्टडी अक्सर मां को मिलती है‌‌। इसका प्रमुख कारण है कि जब लड़की बड़ी होती है तो उसके शरीर में कुछ बदलाव होते हैं और उन बदलाव के बारे में लड़की जिस प्रकार खुले विचार से अपनी मां को अपनी समस्या बता पाएगी। इसके अलावा लड़की की कस्टडी उसके पिता को भी मिल सकती है।

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मुस्लिम धर्म में बच्चे की कस्टडी देने की प्रक्रिया क्या है – Child Custody Law for Islam

  • मुस्लिम धर्म में बच्चों की कस्टडी देने की प्रक्रिया हिंदू धर्म के मुकाबले काफी अलग है बच्चे की कस्टडी देने का पूरा अधिकार मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का है।
  • उसके अनुरूप ही बच्चों की कस्टडी माता-पिता को दी जाती है।
  • यहां पर 7 साल तक बच्चा अपनी माता के साथ रहता है ।
  • और उसके बाद उसे पिता को सौंप दिया जाता है।

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ईसाई धर्म में बच्चों की कस्टडी देने की प्रक्रिया – Child Custody Law for Christian

  • ईसाई धर्म में अगर किसी व्यक्ति का तलाक होता है तो उसके बाद बच्चों की कस्टडी इंडियन डिवोर्स एक्ट 1889 के मुताबिक होता है।
  • अपने माता-पिता के आपसी सहमति के बाद एक बच्चे की कस्टडी किसी एक को दी जाती है।
  • अगर यह मामला किसी कारण से विवादित हो गया है तो ऐसे सिटी में कोर्ट बच्चे की मर्जी पूछेगा कि उसे किसके साथ रहना है उसके अनुरूप ही बच्चे की कस्टडी माता-पिता दोनों में से किसी एक को दी जाती है।

पारसी धर्म में बच्चे की कस्टडी देने की प्रक्रिया – Child Custody Law for Parsi

  • Parsi धर्म में बच्चे की कस्टडी देने के लिए कोई विशेष कानून निर्धारित नहीं की गई इसलिए ऐसे सभी मुद्दों को अभिभावक और वार्ड अधिनियम, 1890 द्वारा संबोधित किया जाता है।
  • पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 के तहत, बच्चे की कस्टडी माता-पिता दोनों में से किसी एक को दी जाती है।
  • माता-पिता को सामान्य तौर पर बच्चों को से मिलने और उनको देखभाल करने का अधिकार कोर्ट की तरफ से दिया जाता है और बच्चे की पालन पोषण में जितना भी खर्चा आएगा उनमें दोनों का खर्चा विभाजित कर दिया जाएगा।

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चाइल्ड कस्टडी के लिए अन्य मूल बातें – Main Points about Child Custody

पांच साल से पहले के बच्चों की चाइल्ड कस्टडी – 5 year age Child Custody

आमतौर पर 5 साल से कम उम्र के बच्चे की कस्टडी मां को दी जाती है। हालाँकि, कुछ परिस्थितियों में, जब माँ को अनुपयुक्त पाया जाता है, तो अदालत हिरासत देने में विवेक दिखाती है। हालांकि, विधि आयोग की रिपोर्ट संख्या 257 के अनुसार, हिंदू कानून माता-पिता को हिरासत देने के लिए समान अधिकार प्रदान करता है। इस्लामी कानून के तहत, बच्चे की कस्टडी मां के पास होती है, लड़के की कस्टडी की उम्र 7 साल और लड़की की कस्टडी की उम्र तब तक होती है जब तक कि वह वयस्क या यौवन की उम्र तक नहीं पहुंच जाती।

चाइल्ड कस्टडी के लिए पिता के अधिकार – father Rights for Child Custody

पिता के पास बच्चे की कस्टडी में मां के समान अधिकार होते हैं। पहले, हिरासत के अधिकार प्रदान करते समय माताओं की उच्च प्राथमिकता थी। हालाँकि, मानसिकता में बदलाव के साथ, अदालत माता-पिता दोनों को समान अधिकार देती है।

अविवाहित माता-पिता के बच्चों के लिए मुलाक़ात के अधिकार अक्सर बच्चे के साथ उनके संबंधों, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, नशीली दवाओं और शराब के दुरुपयोग और अन्य समान कारकों पर निर्भर करते हैं।

हालांकि मुलाक़ात के अधिकारों को अदालत ने मान्यता दी है, फिर भी हिरासत देने में माताओं को प्राथमिकता दी जाती है। एक बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने के लिए, एकल माता-पिता को यह दिखाना होगा कि माँ बच्चे को पालने के लिए योग्य नहीं है और वह बच्चे की प्राथमिक देखभाल करने वाली है।

बच्चों की कस्टडी का मां का अधिकार – Mother Rights for Child Custody

प्रारंभ में, माँ को बच्चे की प्राथमिक अभिरक्षा का अधिकार था। हालांकि, मां को हिरासत के अधिकार देने के लिए अदालत के लिए, मां को अभिभावक के रूप में पेश होना चाहिए।

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क्या होगा अगर पति-पत्नी दोनों बच्चे की कस्टडी करने से इनकार करता है?

यह बहुत ही अनहोनी बात है के आपने बच्चे की कस्टडी कोई भी लेना चाहता । पर उस बचे का क्या कसूर ? पर भारतीय कानून ऐसे ही नहीं छोड़ता । इसके लिए अदालत निचे दिए आदेश जारी करता है :-

  • माता पिता दोनों से बचे को मिलने का अधिकार छीन लेता है।
  • बच्चे का खर्चा दोनों में बराबर बाँट देता है . ताकि बचे की आर्थिक मदद होती रहे।
  • इस हालत में बच्चे की कस्टडी किसी तीसरे पक्ष को दोनों की कोशिश करता है।
No one Wants to Take Child Custody
No one Wants to Take Child Custody

बच्चे के बाद भी मां बाप अलग क्यों हो जाते हैं?

दोस्तों, आज कल सबको बड़ी जल्दी है और सुनने की आदत तो बिलकुल भी नहीं । लोग अपना ईगो के आगे अगले का पक्ष या विचार नहीं देखते । जिसके चलते आज कल Talaq बहुत हो रहे है । आपने देखा होगा के बहुत से केस तो ऐसे है । यहां पर बच्चे होने के बावजूद भी माता पिता अलग हो जाते है । ऐसे क्यों होता है जिसके काफी कारण है :-

  • पति-पत्नी के काम के कारण एक-दूसरे के लिए समय की कमी।
  • पति या पत्नी की मानसिक स्थिति में हिंसा
  • शक करने की आदत
  • Extra Martial Affair
  • सगे-संबंधियों और अपनों के कारण उत्पन्न होने वाली भ्रांतियां।
  • पति-पत्नी के बीच अहंकार का टकराव।
  • किसी गंभीर या मानसिक बीमारी होने के कारण
  • दोनों या किस एक का अच्छे से Mature न होना

बच्चो की कस्टडी बच्चो पर बुरा असर डालती है – Child Custody affects bad

दोस्तों , तलाक़ या माँ बाप के अलग होने के बाद बच्चे किसी एक के साथ रहते है । जिसके चलते बच्चो के केवल एक का ही माँ या बाप का प्यार मिल पाता है । जिसके कारण बच्चा दूसरे पक्ष अपने ही माँ या बात से नफरत करने लगता है । इसके साथ ही बच्चे गुसैल , चिड़चिड़े हो जाते है । उनका शादी जैसे पवित्र सबंध से भरोसा उठ जाता है । कई बार तो यह भी होता है, बचो को आर्थिक और मानसिक पीड़ा ही झेलनी पड़ती है ।

सवाल जवाब (FAQ)

क्या सिंगल मदर को कस्टडी के लिए अप्लाई करने की जरूरत है?

एक एकल माँ स्वतः ही बच्चे की अभिभावक होती है और इसलिए उसे अलग से बच्चे की अभिरक्षा के लिए आवेदन दाखिल करने की आवश्यकता नहीं होती है।

क्या एक पिता, एक माँ से बच्चे की कस्टडी ले सकता है?

बच्चे की कस्टडी माँ को दी जाती है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में, अगर अदालत यह निर्धारित करती है कि बच्चे को पिता के साथ रहने में अधिक दिलचस्पी है, तो पिता को हिरासत दी जा सकती है।

चाइल्ड कस्टडी और मुलाक़ात के अधिकारों में क्या अंतर है?

चाइल्ड कस्टडी का मतलब है पालन-पोषण का समय। मुलाक़ात वह समय है जब बच्चा अपने माता-पिता के साथ बिताता है। जबकि चाइल्ड कस्टडी के मामले में, बच्चा माता-पिता के साथ रहता है, और उन्हें बच्चे के स्वास्थ्य, शिक्षा और कल्याण के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है।

मैं विदेश से चाइल्ड कस्टडी के लिए आवेदन कैसे कर सकता हूं?

एक मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारतीय अदालतों का अधिकार क्षेत्र बाल हिरासत मामलों तक ही सीमित नहीं है। इसका मतलब है कि चाइल्ड कस्टडी के मामलों में जीवनसाथी विदेश से भी आवेदन कर सकता है और कोर्ट इससे इंकार नहीं करेगा।

यदि पति / पत्नी जिम्मेदार नहीं है तो बच्चों की कस्टडी कैसे प्राप्त करें?

यदि एक पति या पत्नी गैर-जिम्मेदार है, या बच्चे को नुकसान होता है, तो अदालत हिरासत से इनकार कर सकती है। माता-पिता में से एक को अदालत में साबित करना होगा कि दूसरा बच्चे के लिए उपयुक्त माता-पिता नहीं है।

नाबालिग बच्चे की उसके किसे दी जाती है?

एक नाबालिग बच्चे की कस्टडी माँ को तभी दी जाती है, जब उसका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा हो।

अगर मन बच्चे का खर्चा नहीं उठा सकती तो कस्टडी किसे दी जाएगी ?

ऐसे में हिरासत में लिए गए नाबालिग का खर्च उसके पिता द्वारा वहन किया जाएगा।

क्या किसी तीसरे पक्ष को चाइल्ड कस्टडी दी जा सकती है?

हां, अगर माता-पिता दोनों की मृत्यु हो जाती है या अदालत को पता चलता है कि वे बच्चे की देखभाल नहीं कर सकते हैं, तो तीसरे पक्ष को भी हिरासत दी जा सकती है।

क्या तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी के लिए सभी धर्मों में एक जैसी व्यवस्था है?

नहीं, तलाक के बाद अलग-अलग धर्मों में चाइल्ड कस्टडी की अलग-अलग व्यवस्था है।

बेटी की कस्टडी पर पहला अधिकार किसके पास है?

बेटी को 18 साल की उम्र तक अपनी मां के साथ रहना चाहिए, जिसके बाद वह अपनी पसंद के पिता के पास जा सकती है। यदि माँ पुनर्विवाह करती है या स्थिति ऐसी है कि वह बच्चे को नहीं रखना चाहती है, तो बेटी पर पिता का अधिकार है।

निष्कर्ष

हम आशा करते है के इस आर्टिकल से आपको Talak ke bad baccho ki custody किसे मिलती है ? किस आधार पर मिलती है ? Child Custody after divorce In Hindi ? child custody after divorce in india ? तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी कैसे मिलती है? बच्चे की कस्टडी कैसे ले ? 5 वर्ष से काम आयु के बच्चे की कस्टडी ? बड़े बच्चे की कस्टडी ? Mother rights for Child custody ? father rights for Child custody ? Child Custody Law religion wise आदि के बारे में पूरी जानकारी दी है । अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप निचे कमेंट कर सकते हो । हमारे साथ जुड़े रहने के लिए हमे सोशल मीडिया पर फॉलो करे । धन्यावाद।

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